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Sura 3
Aya 79
79
ما كانَ لِبَشَرٍ أَن يُؤتِيَهُ اللَّهُ الكِتابَ وَالحُكمَ وَالنُّبُوَّةَ ثُمَّ يَقولَ لِلنّاسِ كونوا عِبادًا لي مِن دونِ اللَّهِ وَلٰكِن كونوا رَبّانِيّينَ بِما كُنتُم تُعَلِّمونَ الكِتابَ وَبِما كُنتُم تَدرُسونَ

फ़ारूक़ ख़ान & नदवी

किसी आदमी को ये ज़ेबा न था कि ख़ुदा तो उसे (अपनी) किताब और हिकमत और नबूवत अता फ़रमाए और वह लोगों से कहता फिरे कि ख़ुदा को छोड़कर मेरे बन्दे बन जाओ बल्कि (वह तो यही कहेगा कि) तुम अल्लाह वाले बन जाओ क्योंकि तुम तो (हमेशा) किताबे ख़ुदा (दूसरो) को पढ़ाते रहते हो और तुम ख़ुद भी सदा पढ़ते रहे हो