وَاتَّبَعوا ما تَتلُو الشَّياطينُ عَلىٰ مُلكِ سُلَيمانَ ۖ وَما كَفَرَ سُلَيمانُ وَلٰكِنَّ الشَّياطينَ كَفَروا يُعَلِّمونَ النّاسَ السِّحرَ وَما أُنزِلَ عَلَى المَلَكَينِ بِبابِلَ هاروتَ وَماروتَ ۚ وَما يُعَلِّمانِ مِن أَحَدٍ حَتّىٰ يَقولا إِنَّما نَحنُ فِتنَةٌ فَلا تَكفُر ۖ فَيَتَعَلَّمونَ مِنهُما ما يُفَرِّقونَ بِهِ بَينَ المَرءِ وَزَوجِهِ ۚ وَما هُم بِضارّينَ بِهِ مِن أَحَدٍ إِلّا بِإِذنِ اللَّهِ ۚ وَيَتَعَلَّمونَ ما يَضُرُّهُم وَلا يَنفَعُهُم ۚ وَلَقَد عَلِموا لَمَنِ اشتَراهُ ما لَهُ فِي الآخِرَةِ مِن خَلاقٍ ۚ وَلَبِئسَ ما شَرَوا بِهِ أَنفُسَهُم ۚ لَو كانوا يَعلَمونَ
फ़ारूक़ ख़ान & नदवी
जिसको सुलेमान के ज़माने की सलतनत में शयातीन जपा करते थे हालाँकि सुलेमान ने कुफ्र नहीं इख़तेयार किया लेकिन शैतानों ने कुफ्र एख़तेयार किया कि वह लोगों को जादू सिखाया करते थे और वह चीज़ें जो हारूत और मारूत दोनों फ़रिश्तों पर बाइबिल में नाज़िल की गई थी हालाँकि ये दोनों फ़रिश्ते किसी को सिखाते न थे जब तक ये न कह देते थे कि हम दोनों तो फ़क़त (ज़रियाए आज़माइश) है पस तो (इस पर अमल करके) बेईमान न हो जाना उस पर भी उनसे वह (टोटके) सीखते थे जिनकी वजह से मिया बीवी में तफ़रक़ा डालते हालाँकि बग़ैर इज्ने खुदावन्दी वह अपनी इन बातों से किसी को ज़रर नहीं पहुँचा सकते थे और ये लोग ऐसी बातें सीखते थे जो खुद उन्हें नुक़सान पहुँचाती थी और कुछ (नफा) पहुँचाती थी बावजूद कि वह यक़ीनन जान चुके थे कि जो शख्स इन (बुराईयों) का ख़रीदार हुआ वह आख़िरत में बेनसीब हैं और बेशुबह (मुआवज़ा) बहुत ही बड़ा है जिसके बदले उन्होंने अपनी जानों को बेचा काश (उसे कुछ) सोचे समझे होते